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एक शराबी अपनी रोज पीने की लत पर - "क्या साथ जाएगा" बीवी-बच्चे - "यूं छोड़ कर भी क्या जाने वाले हो" ??? @#$%^** -विचारणीय
तुम्हारी राजनीति कहती है कि देश या व्यवस्था के लिए मर मिट जाओ, समाज कहता है कि समूह का हिस्सा बने रहने के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दो,अर्थव्यवस्था कहती है कि पैसे कमाने के लिए अपनी जिंदगी दाँव पर लगा दो, धर्म कहता है कि अपने-अपने भगवानों के नाम पर खुद को कुर्बान कर दो, सभ्यता कहती है कि अपनी अलग पहचान के लिए मरने मारने पर उतारू रहो, नैतिकता कहती है कि सत्य को बचाने के लिए अपना वजूद खत्म कर दो | ये ही वो मकसद हैं,जो तुम इन्सानों के लिए तय किये गये हैं | तुमने अपनी नंगी आंखों से कभी किसी राष्ट्र, समाज, धर्म, सभ्यता,नैतिकता या अर्थव्यवस्था को न देखा है और न ही पूरी तरह से समझा है | फिर भी तुमने इनके मकसदों को ओढ लिया और हजारों सालों से इन्हें पूरा करने के लिए खुद को मारते रहे, दूसरे इन्सानों को मारते रहे,दूसरे जीवों को मारते रहे, कुदरत को नुकसान पहुँचाते रहे | मैं तुम्हारी इन हरकतो को वाजिब मान लेता,अगर तुम सारे इंसान इस पूरी कवायद के बाद खुद को एक देश, एक समाज, एक सभ्यता,एक धर्म, एक अर्थव्यवस्था या एक नैतिक मूल्य की छतरी के नीचे इकट्ठा कर पाते | पर तुम्हारी जिन्दगी तो दिमागीतन्त
'अकेलापन' इस संसार में सबसे बड़ी सज़ा है.!                  और 'एकांत'    इस संसार में सबसे बड़ा वरदान.!!        ये दो समानार्थी दिखने वाले                शब्दों के अर्थ में     . आकाश पाताल का अंतर है।         अकेलेपन में छटपटाहट है           तो एकांत में आराम है।          अकेलेपन में घबराहट है              तो एकांत में शांति।            जब तक हमारी नज़र       बाहरकी ओर है तब तक हम.        अकेलापन महसूस करते हैं                        और    जैसे ही नज़र भीतर की ओर मुड़ी    तो एकांत अनुभव होने लगता है।           ये जीवन और कुछ नहीं                      वस्तुतः       अकेलेपन से एकांत की ओर               एक यात्रा ही है.!!               ऐसी यात्रा जिसमें     रास्ता भी हम हैं, राही भी हम हैं        और मंज़िल भी हम ही हैं.!!
● अहंकार विसर्जन है भक्ति ● प्रेम का मार्ग मस्ती का मार्ग है। होश का नहीं, बेहोशी का। खुदी का नहीं, बेखुदी का। जागरूकता का नहीं, तन्मयता का। यद्यपि प्रेम की जो बेहोशी है उसके अन्तरगृह में होश का दीया जलता है। लेकिन उस होश के दीए के लिए कोई आयोजन नहीं करना होता। वह तो प्रेम का सहज प्रकाश है, आयोजन नहीं। यद्यपि प्रेम के मार्ग पर जो बेखुदी है, उसमें खुदी तो नहीं होती, पर खुदा जरूर होता है। छोटा मैं तो मर जाता है, विराट मैं पैदा होता है। और जिसके जीवन में विराट मैं पैदा हो जाए, वह छोटे को पकड़े क्यों ? वह छुद्र का सहारा क्यों ले ? जो परमात्मा में डूबने का मजा ले ले, वह अहंकार के तिनकों को पकड़े क्यों, बचने की चेष्टा क्यों करे ? अहंकार बचने की चेष्टा का नाम है। निर - अहंकार अपने को खो देने की कला है। भक्ति विसर्जन है, खोने की कला है। और खूब मस्ती आती है भक्ति से। जितना मिटता है भक्त, उतनी ही प्याली भरती है। जितना भक्त खाली होता है, उतना ही भगवान से भरपूर होने लगता है। भक्त खोकर कुछ खोता नहीं, भक्त खोकर पाता है। अभागे तो वे हैं जिन्हें भक्ति का स्वाद न लगा, क्योंकि वे कमा - कमाकर केवल
नफरतों को फुर्सत है किसे ? ये जिंदगी तो, मोहब्बत के लिए भी कम लगती है ।
ओशो व्याख्या - हम लड़ लेते हैं, झगड़ लेते हैं, गाली—गलौज कर लेते हैं, दोस्ती—दुश्मनी कर लेते हैं, अपना—पराया कर लेते हैं, मैं-तू की बड़ी झंझटें खड़ी कर देते हैं। अदालतों में मुकदमेबाजी हो जाती है, सिर खुल जाते हैं। अगर हम मृत्यु को ठीक से पहचान लें, तो इस पृथ्वी पर वैर का कारण न रह जाए। जहां से चले जाना है, वहां वैर क्या करना? जहां से चले जाना है, वहां दो घड़ी का प्रेम ही कर लें। जहां से विदा ही हो जाना है, वहां गीत क्यों न गा लें, गाली क्यों बकें? जिनसे छूट ही जाना होगा सदा को, उनके और अपने बीच दुर्भाव क्यों पैदा करें? कांटे क्यों बोएं? थोड़े फूल उगा लें, थोड़ा उत्सव मना लें, थोड़े दीए जला लें! इसी को मैं धर्म कहता हूं। जिस व्यक्ति के जीवन में यह स्मरण आ जाता है कि मृत्यु सब छीन ही लेगी; यह दो घड़ी का जीवन, इसको उत्सव में क्यों न रूपांतरित करें! इस दो घड़ी के जीवन को प्रार्थना क्यों न बनाएं! पूजन क्यों न बनाएं! झुक क्यों न जाएं—कृतज्ञता में, धन्यवाद में, आभार में! नाचें क्यों न, एक—दूसरे के गले में बांहें क्यों न डाल लें! मिट्टी मिट्टी में मिल जाएगी। यह जो क्षण—भर मिला है हमें, इस क्षण—भ
छीनने की आदत नहीं, माँगना सीखा नहीं और हक़ कभी छोड़ता नहीं ।। हारा हूँ कई बार इस दिल के हाथों मगर, ये दिल है कि इंसानियत कभी छोड़ता नहीं ।।